Friday, April 20, 2012

देवासुर नहीं नारद संग्राम


रामबहादुर राय
 संतोष भारतीय ने जो विवरण दिया है वह यह साबित करने के लिए काफी है कि जिस आधार पर इंडियन एक्सप्रेस ने ‘सैनिक विद्रोह’ का संकेत देने वाला ‘सी’ शब्द अपने पाठकों के गले उतारा वह वास्तव में था ही नहीं। फिर सवाल घूमकर जहां पहुंचता है वह यह है कि क्या इंडियन एक्सप्रेस ने सचमुच वह स्टोरी ‘हथियारों की लॉबी, अमेरिका, अंडरवर्ल्ड’ के प्रभाव में छापी है, जैसा कि चौथी दुनिया ने आरोप लगाया है।
आदर देना और वक्त के तकाजे पर इज्जत उतार लेना कोई संतोष भारतीय से सीखे। अगर लीक पर चलने की आदत होती तो संतोष ‘भारतीय’ नहीं, भदौरिया होते। उन्होंने साबित कर दिया है कि वे भारतीय हैं। अब यही जिम्मा उन्होंने उन लोगों पर छोड़ा है जिनको संतोष भारतीय ने ‘पत्रकारिता के कुरूक्षेत्र’ में ललकारा है। चुनौती उन्हें दी है जिनकी साख और धाक का रामनाथ गोयनका के जमाने में लोहा माना जाता था। जमाना बदलता है तो क्या जमीर भी बदल जाती है? यही सवाल संतोष भारतीय ने अपने अखबार की कवर स्टोरी- ‘भारतीय सेना को बदनाम करने की साजिश का पर्दाफाश’, में उठाया है।
पहले वह हिस्सा पढ़िए जो संतोष भारतीय की कवर स्टोरी में है- ‘बीते चार अप्रैल को इंडियन एक्सप्रेस के फ्रंट पेज पर पूरे पन्ने की रिपोर्ट छपी, जिसमें देश को बताया गया कि 16 जनवरी को भारतीय सेना ने विद्रोह की तैयारी कर ली थी। इस रिपोर्ट से लगा कि भारतीय सेना देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था को समाप्त कर फौजी तानाशाही लाना चाहती है।’ इसके बाद संतोष भारतीय की टिप्पणी है कि ‘लेकिन तीन घंटे बीतते-बीतते साफ हो गया कि यह रिपोर्ट झूठी है, बकवास है, किसी खास व नापाक इरादे से छापी गई है और इसे छपवाने के पीछे एक बड़ा गैंग है।’ जिस दिन यानी 13 अप्रैल को यह रिपोर्ट चौथी दुनिया की वेबसाइट पर आई तो दिल्ली में पत्रकारों को एक नया मसाला मिल गया। जिधर देखो उधर ही इसकी चर्चा थी। कहा तो यहां तक जाता है कि अंग्रेजी अखबारों के दफ्तरों में उस दिन देर शाम तक इसका वाचन किया जाता रहा। कुछ लोग मानते हैं कि वाचन नहीं, वहां पाठ हो रहा था। भारतीय परंपरा में पाठ उसे कहते हैं जिसे बार-बार पढ़ना होता है।
उस दिन रिपोर्ट के बारे में जो सूचनाएं मिली उससे हर किसी पत्रकार को उम्मीद थी और उसने अगले दिन इंडियन एक्सप्रेस को बड़ी उत्सुकता से देखा और पढ़ा। वह देखना चाहता था कि एक्सप्रेस ने अपनी स्टोरी का फॉलो-अप क्या किया है। हर पाठक और उस पत्रकार को घोर निराशा हुई कि एक्सप्रेस ने अपनी खबर को मानों भुला देना ही बेहतर समझा है। ऐसा होना नहीं चाहिए। इंडियन एक्सप्रेस अपनी स्टोरी पर कायम है, यह कहने भर से काम नहीं चलेगा। उसे अपने पाठकों को साथ लेना होगा जिसके लिए जरूरी है कि वह बताए कि उस पर लगे आरोप गलत हैं। यह तथ्यों को सामने लाकर ही किया जा सकता है नहीं तो माना जाएगा कि वह इसमें इस्तेमाल हो गया है।
संतोष भारतीय ने छोटी स्टोरी नहीं लिखी है। वह करीब आठ हजार शब्दों की है। जिसमें उन्होंने शेखर गुप्त का एक चित्र खींचा है जो लक्ष्मण रेखा के अंदर और बाहर का है। सवाल किसी व्यक्ति का नहीं है, पत्रकारिता के उस किले का है जो अबतक अजेय था। संतोष भारतीय ने जो विवरण दिया है वह यह साबित करने के लिए काफी है कि जिस आधार पर इंडियन एक्सप्रेस ने ‘सैनिक विद्रोह’ का संकेत देने वाला ‘सी’ शब्द अपने पाठकों के गले उतारा वह वास्तव में था ही नहीं। फिर सवाल घूमकर जहां पहुंचता है वह यह है कि क्या इंडियन एक्सप्रेस ने सचमुच वह स्टोरी ‘हथियारों की लॉबी, अमेरिका, अंडरवर्ल्ड’ के प्रभाव में छापी है, जैसा कि चौथी दुनिया ने आरोप लगाया है।
संतोष भारतीय ने पहले पूछा है कि शेखर गुप्ता ने वह स्टोरी चार अप्रैल को ही क्यों छापा? इसका उन्होंने जवाब दिया है कि ‘इसलिए कि इस पीआईएल से मीडिया और देश की जनता का ध्यान हटाना जरूरी था।’ वहीं वे यह वाक्य भी जोड़ते हैं कि ‘देश का ध्यान इन सवालों से हटाने के लिए इंडियन एक्सप्रेस ने उस खबर को छपवाया गया।’ यहीं पर शेखर गुप्ता के संपादकीय नेतृत्व पर उन्होंने यह लिखकर सवाल उठाया है कि जब 22 मार्च को आपको पता चल गया था और दो अप्रैल को आईबी का खुलासा आ गया था तो आपने ये स्टोरी क्यों की?’
संतोष भारतीय ने लिखा है कि ‘मैं आपको बता रहा हूं कि शेखर गुप्ता साहब ने ऐसा क्यों किया।’ यह बताते हुए उन्होंने जो वर्णन किया है उसे रक्षा सौदे की दुनिया में चंडीगढ़ लॉबी के नाम से जाना जाता है। लेकिन जो नई बात चौथी दुनिया ने बताई है वह मजेदार है। वह यह है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की कलकत्ता यात्रा में उनसे पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल जे.जे. सिंह मिले। प्रधानमंत्री की बहन के घर डिनर पर मुलाकात हुई। उसमें ले. जनरल बिक्रम सिंह भी शामिल थे। इस सूचना से यह धारणा पुष्ट होती है कि जनरल बिक्रम सिंह को सेनाध्यक्ष बनाने के लिए जनरल वी.के. सिंह को समय से पहले रिटायर किया जा रहा है। चौथी दुनिया ने यह बताते हुए एक तथ्य को छिपा लिया है कि वह डिनर कब हुआ था?
दूसरी बात जो छिपा ली गई है वह उस मंत्री का नाम है जो चौथी दुनिया के मुताविक साजिश का सूत्रधार है। लेकिन इशारे से उन्होंने बता दिया है कि वे कौन हैं। मेरी नजर में इस पूरी कहानी में सबसे महत्वपूर्ण दो बात है। एक यह कि रीडिफ वेबसाइट ने 13 मार्च को ही स्टोरी कर दी थी। दूसरा मुद्दा हमारी सेना की युद्ध संबंधी वास्तविकताओं का है। यह जनरल वी.के. सिंह की उन चिट्ठिियों के लीक होने से उभरा है।